Wednesday, October 2, 2013

जी जाए कुंवर अकेला है .

ना अपना - कोई पराया है 
प्रभु ने भी यही सुनाया है .
लड़ जा अपने जो गैरों से 
गीता में यही बताया है .

राजा है पर प्रजापिता नहीं
पंछी 'पर' हैं - पर उड़ा नहीं 
कागा बोली सब बोल रहे -
हंसों का अतापता नहीं . 

भीक्षा में जो स्वराज मिला
वो कल मिला ना आज मिला
जो मरे जिनावर खाते हैं -
वो ही कव्वे कहलाते हैं .

स्वाधीन हुए - पर सपना है
माना हाकिम भी अपना है .
खाने पीने की हौड बहूत -
जो खालो वो ही अपना है .

सब अंग्रेजी में गाते हैं
छैला बनकर इतराते हैं .
क्या वक्त आगया है यारो
कव्वे भी मोती खाते हैं .

स्वदेशी बात पुरानी है
परदेसी सही निशानी है .
घर महके देसी भोजन से
पर बाहर पिज़्ज़ा खानी हैं .

देसी से हम भी नहीं रहे
चीनी भाई सब कहीं रहें
पूजा के आले से लेकर
हम देसी वाले नहीं रहे .

गाँधी रोता है जन्नत में
आंधी* रोती है मन्नत में .
ये चला चली का मेला है
जी जाए कुंवर अकेला है .

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